भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता रहम दिलों में भी जरा नहीं होता । बेहद उन्मादि खौफनाक इरादों पे इंसानियत का पहरा नहीं होता । बस हिंसक बेकाबू सोंच होती है रिश्ता मज़हब से गहरा नहीं होता ।
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