मैं हूँ यांगत्से की आदि १
यांगत्से का तू अंत पिया
रोज तड़पूँ मैं दीदार बिना
पीते दोनों एक ही पनिया
हाए ये पानी कब थमेगा
हाए ये दर्द कब मिटेगा
हो तेरा दिल भी मुझसा
ऐ पिया न होना बेवफ़ा
कवि: ली चीई (समय काल: दसवीं-ग्यारहवीं सदी) ; अनुवाद:इरफान अहमद, व्याख्याता, चीनी विभाग, सिक्किम केन्द्रीय विश्वविद्यालय; १ यांगत्से: नदी का नाम