प्यार की व्याख्या सदियों से हज़ारों लोगों ने अलग अलग ढंग से किया है और इन्ही हज़ारों व्याख्याओं में एक व्याख्या प्रियमवदा दीक्षित जी के द्वारा भी की गयी है। 24 साल की आयु में ही अपनी पहली किताब “तुम्हारी प्रियम” से चर्चा में आयी लेखिका मानती हैं कि साहित्य उनके लिए डिप्रेशन से बाहर आने का सहारा बना। साहित्यमंजरी की टीम को मौक़ा मिला प्रियमवदा जी से बात करने का और पेश हैं इनसे हुई उस बातचीत के कुछ अंश:
साहित्यमंजरी से बात करने के लिए शुक्रिया। अपने बारे में कुछ बताइये ।
धन्यवाद इस अवसर के लिए। मैं इलाहाबाद से हूँ। पढ़ाई लिखाई भी वहीं हुई। Mass Communication से ग्रैजूएशन करने के बाद मैं दिल्ली आ गयी और पिछले कुछ सालों से यहीं डेरा डाले बैठी हूँ
लेखन से जुड़ाव कैसे हुआ? क्या बचपन से ही पढ़ने लिखने का शौक़ रहा है?
लेखन से जुड़ाव काफ़ी recent है। बचपन में साहित्य से कुछ ख़ास लगाव नहीं रहा। जब मैं इलाहबाद से दिल्ली आयी थी तब ख़ुद के लिए कुछ लक्ष्य निर्धारित किए थे मैंने जो क़रीब 3-4 साल कोशिश के बावजूद पूरा नहीं हुआ। उसके बाद मैं डिप्रेशन में चली गयी। फिर साहित्य उस डिप्रेशन से बाहर निकलने का एक माध्यम बन गया। धीरे धीरे लिखना पसंद आने लगा और क़रीब 2 महीने में मैंने अपनी पहली किताब लिख डाली। हालाँकि उसे प्रकाशित होने में और कई महीनों का इंतज़ार करना पड़ा ।
अपनी पहली किताब के बारे में बताइए। कब आपके मन में ये आया की जो लिखा है आपने वो लोग पढ़ना चाहेंगे।
मैंने 2017 से लिखना शुरू किया। 2018 में हिंद युग्म द्वारा आयोजित एक कॉन्फ़्रेन्स अटेंड करते वक़्त लगा की शायद इसे प्रकाशित किया जाए। मैंने झटपट “तुम्हारी प्रियम” की एक summary प्रकाशक को भेजी और कुछ दिनों के बाद मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा जब मुझे ये उन्होंने ये मेल भेजा की वो मेरी किताब छापना चाहते हैं। उस मेल के बारे में बात करते हुए आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं
“तुम्हारी प्रियम” क्या है? क्या ये आपकी या आपके आसपास किसी की कहानी से प्रेरित है?
“तुम्हारी प्रियम” कुछ कहानियों का एक संग्रह है जो प्यार के अलग अलग रूप दिखाती है । मेरे ख़याल से प्यार एक बहुत सरल सा भाव है जिसे बिना वजह हम complicate कर देते हैं। फिर चाहे वो एक बच्चे का अपनी माँ के लिए प्यार हो या फिर एक पति पत्नी का आपस में प्यार जो बिछड़ कर बहुत सालों बाद जीवन के आख़िरी पड़ाव पर मिले हों। प्यार वो नहीं जिसमें आप सामने वाले की अच्छी बातों को ही पसंद करें।प्यार वो है जिसमें आप सामने वाले की अच्छी बुरी बातें, सफलताएँ-असफलताएँ सब अपनाते हुए हर क़दम पर उनका साथ दें। और अपने प्यार के प्रति विचारों को ही मैंने अपनी कहानियों के माध्यम से व्यक्त करने की कोशिश की है। और जहाँ तक बात रही प्रेरणा की तो मुझे लगता है कि हर रचनाकार अपने आस पास से ही प्रेरणा लेता है और वो वही लिखता/लिखती है जो उसने जिया या देखा है
आगे और क्या करना चाहती हैं।
लिखने का सिलसिला तो जारी रहेगा। अभी मैं एक नोवेल पर काम कर रही हूँ जिसके बाद भीष्म पितामह पर आधारित एक उपन्यास लिखने का मन है। मैं फ़िल्मों में भी बतौर स्क्रिप्ट राइटर जाना चाहती हूँ और उसके लिए भी प्रयासरत हूँ । मेरी दिली ख़्वाहिश है कि कभी महेश भट्ट साहब के लिए लिखूँ।
आपको पढ़ने का कितना शौक़ है? आज कल किसे पढ़ रही हैं?
सच कहूँ तो मुझे लगता है कि अभी मुझे बहुत पढ़ना बाक़ी है। मुझे तहमीना दुर्रानी को पढ़ना बहुत पसंद है। ये एक पाकिस्तानी लेखिका हैं और इनकी पहली नोवेल “My Feudal Lord” पढ़ते ही मैं इनकी फ़ैन बन गयी।रविंद्र सिंह को पढ़ना भी पसंद है।प्रेमचंद जी को मैं अपना गुरु मानती हूँ और जो कुछ थोड़ा बहुत सीखा है इनकी कहानियाँ पढ़कर ही सीखा है। हाल फ़िलहाल में मानव कौल जी को पढ़ रही हूँ। मुझे धार्मिक किताबें पढ़ना बहुत पसंद हैं।“द्रौपदी की महाभारत” पढ़ने के बाद तो मैंने द्रौपदी पर एक कविता भी लिखी है।
आजकल के रचनाकारों के सामने एक सवाल जो हमेशा आता है वो ये है कि उनकी भाषा शैली कैसी हो? एक जो बना बनाया तथाकथित “शुद्ध हिंदी” का ढाँचा है उसके दायरे में रह कर लिखा जाए या जो बोली वो बोलते हैं उसमें लिखा जाए?
एक लेखक या लेखिका को ये ध्यान में रखना चाहिए कि उनके पाठक को क्या समझ में आएगा। मान लीजिए मैं उत्तर पूर्व के लोगों के पढ़ने के लिए कुछ लिख रही हूँ और आँचलिक शब्दों का प्रयोग कर रही हूँ तो मेरी बात पाठकों तक पहुँच ही नहीं पाएगी और मेरा लिखने का मक़सद अधूरा रह जाएगा। हाँ लेकिन बिना वजह कठिन शब्दों का प्रयोग करने से भी बचना चाहिए। भाषा सरल होकर भी दमदार हो सकती है। फ़ोकस इसपर होना चाहिए कि अपनी कही बात पाठकों तक पहुँच जाए
लेखक/लेखिका को किसके लिए लिखना चाहिए? ख़ुद के लिए या पाठकों के लिए?
पाठक वही पढ़ते हैं जो उन्हें पढ़ाया जाता है। इस देश में लोग tanu weds manu और masaan जैसी फ़िल्मों को भी हिट कराते हैं और kabir Singh को भी। आप पाठकों के सामने बस अच्छी कहानी रखिए। जब मैं लिख रही थी तब कुछ लोगों ने मुझसे कहा था कि कहानी में थोड़े गाली-गलोच डाल दो या थोड़ा adult कांटेंट लिखो तो किताब हिट हो जाएगा।लेकिन मेरा मानना है कि आप जो फ़ील करते हैं वो आसान भाषा में पाठकों तक पहुँचा सके तो लोग आपको पढ़ेंगे
साहित्य के अलावा और क्या पसंद है आपको?
मुझे फ़िल्में देखना बहुत पसंद है। साल में 100 फ़िल्में देख लेती हूँ मैं कमसेकम। मुझे मंदिर जाना बहुत पसंद है। एक सुकून सा मिलता है वहाँ मुझे। इसके अलावा articles,मूवी रिव्यूज़ आदि भी लिखती हूँ
आपने बताया कि आप freelance राइटिंग भी करती हैं? क्या मार्केट अभी इतना बड़ा है कि कोई इसे career बनाने के बारे में सोचे?
मुझे नहीं लगता। और उसका कारण मार्केट नहीं है। इंडिया में अक्सर लोग आपसे काम करवा कर पैसे देने में आना कानि करते हैं। मैंने युरपीयन पत्रिकाओं के लिए भी लिखा है लेकिन वहाँ पेमेंट की कोई दिक्कत नहीं हुई आम तौर पर । लेकिन वहीं जब भारत में फ़्रीलैन्सिंग assignments की बात आती है तो बिना advance लिया काम शुरू करने में भी डर लगता है
आपसे बात करके बहुत अच्छा लगा। हमसे जुड़ने के लिए आपका आभार
शुक्रिया मुझे और अधिक हिंदी साहित्य प्रेमियों तक पहुँचने का मौक़ा देने के लिए।