मुसाफिर कैफ़े

यदि किसी किताब में पात्रों का नाम सुधा,चन्दर और पम्मी हो तो एक तो पहले ही उस किताब पर फ़िदा हो जाऊंगा और दो की उस किताब से मेरी अपेक्षा दोगुनी हो जाएगी । ख़ैर ”गुनाहों का देवता" एक अलग कहानी कहती है, एक अलग ढंग से कहती है और ”मुसाफिर कैफ़े” एक अलग कहानी एक अलग ढंग से कहती है । 

Musafir Cafe book review


“मुसाफिर कैफ़े” दिव्य प्रकाश दुबे की तीसरी किताब है । यह उपन्यास चन्दर और उसके जीवन से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े कई अन्य लोगों की कहानी है । एक लड़का जिसके पास एक अच्छी नौकरी है, जिसके जीवन में प्रेम है, जिसके ऊपर किसी तरह का सामाजिक दबाव नहीं है फिर भी वो अपने जीवन में एक शून्य को तलाश लेता है एवं अपने सपनों और यथार्थ के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करता हुआ किस तरह अनेक मनोभावों एवं पड़ावों से गुज़रता है, इसकी कहानी कहता है ”मुसाफिर कैफ़े" । 

खैर ये कहानी जितनी चन्दर की है, उतनी ही सुधा की भी.. और लगभग उतनी ही पम्मी की भी । सुधा कोई भी सामान्य सी लड़की है जिसके जीवन पर भी उसके बीते कल का प्रभाव देखा जा सकता है । पम्मी भी वैसी ही एक साधारण सी लड़की जिसके सपने हैं, जो कुछ समय तक तो खुद को रोक पति है लेकिन फिर सब कुछ छोड़ कर अपने सपनों के पीछे भाग पड़ती है 

“मुसाफिर कैफ़े” को एक लव स्टोरी की तरह देखा जा सकता है । कहानी ऐसी नहीं है जो कभी पहले न कहा गया हो । न ही एक अलग शैली है । कुल मिलकर अगर आप इसको critically analyze करें तो शायद ही कुछ ऐसा मिले जो आपको mesmerize कर दे । फिर भी ये एक ऐसा उपन्यास है जिसे एक बार पढ़ना शुरू करें तो बिना ख़त्म किये रख पाना बहुत मुश्किल है । कई काऱण हैं । सबसे पहली बात ये की बहुत सारे लोग खुद को इससे रेलाते कर पाएंगे । जीवन में कुछ अलग करने की चाह, समाज के बनाये नियमों के प्रति विद्रोह, एवं जीवन के हर पड़ाव पर मिलने वाले द्वंद, ये हम सब नें कभी न कभी जरूर देखा अवं महसूस किया है । अब भाषा को ही देख लीजिये । एक ज़माना था जब बोलचाल की भाषा अलग और साहित्य की भाषा कुछ और होती थी । इस उपन्यास की भाषा वो ही है जिसे हम हर दिन प्रयोग करते हैं । संवाद छोटे हैं जैसा की असल ज़िन्दगी में होता है ।कुल मिलकर यदि कोई मुझे कोई पूछे की ये किताब क्यों पढ़े तो मेरा साधारण सा उत्तर होगा की पढ़ने में मज़ा आएगा और पढ़कर सुकून मिलेगा । 

किसी पुस्तक की सफलता शायद इस बात से भी तय की जा सकती है की उसका पाठकों पर impact कितना और कैसा हुआ । पढ़ने के बाद कई संवाद हैं जो आपके दिमाग में घर कर ले जायेंगे 

“पुरानी जगहों पर इसलिए भी जाते रहना चाहिए क्योंकि वहां पर हमारा पास्ट हमारे प्रेजेंट से आकर मिलता है लाइफ को रिवाइंड करके जीते चले जाना भी आगे बढ़ने का ही एक तरीका है “

“इंडिया में 90 % लड़के ऐसे सोचने में ही रह जाते हैं । वो कॉर्नर सीट की टिकट तो ले लेते हैं लेकिन कुछ कर नहीं पाते। ”

“जिंदगी की मंजिल भटकना है कहीं पहुँचना नहीं।”

ऐसे कई संवाद है जो हो सकता है आपको याद रह जाये और कभी न कभी किसी के सामने आप इसे बोल पढ़ें । और हाँ इस समीक्षा में भी कई अंग्रेज़ी शब्द हैं, ठीक जिस तरह बोलचाल में हम प्रयोग करते हैं और इस तरह की भाषा का इस समीक्षा में प्रयोग करने का श्रेय भी कुछ हद तक ”मुसाफिर कैफ़े” एवं आजकल के युवा हिंदी साहित्यकारों को दिया ही जा सकता है । कुल मिलाकर यदि हिंदी साहित्य पसंद है तो इस उपन्यास को पढ़ना ही चाहिए । 


तारीख: 08.09.2016                                    कुणाल









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