उल्फ़त या उलझन

ऐसा लगा वो मिल गया जिसकी मुझे तलाश थी, 
आकाश मे उड़ने लगी, पर लग गए पंछी बनी। 

चाहा उसे ऐसे कि चाहत भी कम लगने लगी,
एहसास ऐसा ना कभी पाया लगा जनमो जनम।
 
फ़िर भी कँही, इक डर था ज़हन मे बढ रहा,
वो चाहता है मुझे या है मेरा सपना कोई। 

उसने कभी बोला नही या मैंने कभी जाना नही,
जो भी किया दिल से किया, उसके लिये सोचा नही। 

सब दे दिया जो था मेरा, ना वापसी की मांग की। 
ना इल्म है इस बात का कि दिल मे उसके कौन था,
कोई था भी या बस एक याद थी, पर है पता मैं तो नही। 
 
उल्फ़त मेरी मेरे लिए ना जानें क्यों उलझन बनी,
अब यकीं सा हो रहा वो है नही मेरे लिये,
शायद वो मेरा ख़्वाब था या कोई ग़लतफ़हमी मेरी।  

अब बस हुआ, अब बस करो मुझको नही रहना यंहा,
अब बस हुए ये दर्द और उलझन भरी ये ज़िन्दगी। 

जाने दो मुझको दूर, ये सब नही मेरे लिये,
चाहूँगी उसको उम्र भर पर वो नही मेरे लिए। 

उसकी ख़ुशी, उसकी हँसी होगी सदा मेरी दुआ,
बस तलाश ना होगी कोई, अब अन्त है ये मेरे लिए। 


तारीख: 09.06.2017                                    पूजा शहादेव









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