एक दिन


मैं पी लूंगा खारा पानी,
फांक लूंगा मुट्ठी भर रेत।

चढ़ जाऊंगा किसी मलबे पर,
दिखलाऊंगा फूला पेट।

चील–कौए नोचेंगे मांस मेरा,
प्रकृति ले लेगी अपनी भेंट।

फिर चीर–फाड़ कर मेरे अंदर,
मिलेगी एक किताब—

जिसमें होगा,
गीता का उपदेश।

क्यों युद्ध ज़रूरी है,
क्यों ज़रूरी है मेरा मरना—

आवश्यक क्यों है
मेरा नरसंहार करना।

औचित्य लगेगा दुनिया को,
चढ़ मंचों पर जब
देगा कोई भाषण,
पढ़ देगा दो–चार श्लोक।

सब पीटेंगे ताली,
उचित हो जाएगा सब कुछ।

जब खिसक रही लाशों में
समंदर मुझे लेगा चुपचाप समेट।


तारीख: 25.06.2025                                    अंकित मिश्रा




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