मानव हूँ परिहास क्यों?

हर्ष क्या, बिलाप क्या

संयोग से सौभाग्य क्या

अभिशाप सा वरदान भी

किरदार है विज्ञान की।।

 

विज्ञान से धनधान्य है

अध्यात्म से अनजान है

लाचार है निर्धन भी है

दुष्प्रभाव से दुर्जन भी है।।

 

बंदूक से, कारतूस से

अपंग है करतूत से

व्यभिचार भी तूने दिया

सदाचार क्या, आहार क्या।।

 

विकलांगता तेरी देन है

बैसाखी महज एक दान है

मेरा प्यार था परित्याग सा

तेरा प्यार भी बस हार सा।।

 

नींद भी तुमने है छीनी

दवा दे सेहत भी छीनी

ज्ञान का आभास ज्यों

मानव हूँ परिहास  क्यों ?


तारीख: 07.07.2019                                    ज़हीर अली सिद्दिक़ी









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