विजय रथ

मैं रुका हूँ , विश्राम लूँगा 
फिर पलट हुँकार लूँगा 
न समझ इसे हार मेरी 
फ़िर  होगा वार  भारी 
मंज़िल कदमो में होगी 
साक्षी होगी दुनिया सारी 

थी कमी कुछ तो तरीके में 
सलीके या इरादे में 
पर चूकना  लक्ष्य से 
अक्सर हारना ही नहीं होता 
फ़िर पलट के  वार होगा 
भेद लक्ष्य पार होगा 

पग मेरे कब डगमगाए 
पथ में फ़िर  से  देखना है 
उसी पथ से उसी मंज़िल 
को ही फ़िर से भेदना है 
चला तब ही हूँ उसी पथ 
न रुकेगा अब विजय रथ 


तारीख: 18.06.2017                                    विष्णु पाल सिंह









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