बेनूरी है अब नजारों पे क्या लिक्खा जाऐगा

gazal shayari

बेनूरी है अब नजारों पे क्या लिक्खा जाऐगा
इस मौसम मे बहारों पे क्या लिक्खा जाऐगा

दरवाजे पर तो मुझको गद्दार लिखा है उन्होंने
सोचता हूँ अब दिवारों पे क्या लिक्खा जाऐगा

बस्तियों के बच्चे अनपढ़ रह जाएंगे तो कल
घर आंगन और द्वारों पे क्या लिक्खा जाऐगा

अपने ही अजीज अगर लूटेंगे मारेंगे तो फिर
प्यार वफ़ा भाई चारों पे क्या लिक्खा जाऐगा

जमीं पे नफरत लिखकर चांद पे बसने वालों
ये बताओ चांद तारों पे क्या लिक्खा जाऐगा


तारीख: 27.01.2024                                    मारूफ आलम









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है