फिर एक नई छाया आई रिश्ते में


फिर एक नई छाया आई रिश्ते में,  
दिल की बेकरारी बढ़ी इस रिश्ते में।

वो दोस्त, जो दफ्तर का साथी बना,  
तेरी बातों में हरपल समाया, इस रिश्ते में।

तेरी मुस्कान में उसकी झलक क्यों है,  
एक अजीब सी बेचैनी है इस रिश्ते में।

मैंने पूछा तो तूने हंसकर टाल दिया,  
क्यों एक अनजाना डर है इस रिश्ते में।

तेरी आंखों की चमक कुछ कह रही है,  
तेरे दिल की बात छिपी है इस रिश्ते में।


तारीख: 08.10.2024                                    मुसाफ़िर






रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है


नीचे पढ़िए इस केटेगरी की और रचनायें