जुबां पे सत्ता का जब पहरा हो जाता है
हर आदमी गूंगा और बहरा हो जाता है
उम्र भर टिमटिमाते हैं मगर बाद मरने के
जुगनुओं की लाश पे अंधेरा हो जाता है
नदी के मिलने से कभी उथला नही होता
पहले से समुंदर और गहरा हो जाता है
तख्तियों पर लकीरें खींचोगे तो पाओगे
मासूम सा प्यारा एक चेहरा हो जाता है
जहाँ आबादियां खत्म हो जायें ऐ दोस्त
वहाँ बेताब रूहों का बसेरा हो जाता है
विरान घरों को क्या घर कहोगे "आलम"
जहाँ इंसान नही वहां सहरा हो जाता है