खाली पन्नों में शब से न जाने किसका नाम ढूँढता हूँ
साकी कुछ देर सम्भालो जाम अभी इक पैगाम ढूँढता हूँ
कातिब-ए-आमिल से तेरा ये खौफ़ और मेरी बदनसीबी
तेरे सायबां में बीतीं दुपहरों के निशान ढूँढता हूँ
सूने कागज़ पे बिन स्याही लिखता हूं कोरी नज़्में
कोई मुकाम मिले सो ज़िन्दगी के इम्तिहान ढूँढता हूँ
रस्मो रिवाज़ औ तुझसे वो चुपके मिलना चांदनी में
रास्तों पे चीखती तेरी यादों को सरेआम ढूँढता हूँ
अश्कों में कहता हूं आज जो बातें दिल में रह गयीं
सफीने पे खड़ा तेरी आँखों में खुद के अरमान ढूँढता हूँ