मैं तन्हा आज भी चलता हूं गिरता हूं संभलता हूं
इश्क़-ए-वफ़ा की राहों से झुकते डरते गुजरता हूं
मेरी रूह कसकती है सीने पे छुरियां चलती हैं
कोने वाली दुकानों पे जब उनके चर्चे सुनता हूं
वो मुझसे यारी रखते हैं, मैं उनसे मुहब्बत करता हूं
इश्क़-ए-पाक़ की अहदों को आईनों में ही सुनता हूं
वो आग बराबर जलती है वो धुआं बराबर उठता है
ख़्वाबों में भी उनकी मैं वो पलक का गिरना गिनता हूं
मुश्किल मेरी ख़ामोशी मेरे लफ़्ज सुलगते मिलते हैं
हर रोज फूल में चुनता हूं हर रोज मैं आंहें भरता हूं
सियाह जुल्मत की रातों में अब आ के वो ही ये कह दे
मैं तुझपे जान लुटाता हूं मैं तुझसे मुहब्बत करता हूं