अबे तू क्या और भला तेरी औकात क्या
कोई सुनता भी है यहाँ पर तेरी बात क्या ।
माखौल उड़ाते हैं तेरी बकवास गज़लों पे
बता न,शायरी में है तेरी कोई बिसात क्या ।
बड़ा आया हरएक मौज़ू पर लिखने वाला
सब को, मसलों से मिल गई निजात क्या ।
बजते रहतें हो मियाँ ढ़पोरशंख की तरह
बेमक़सद ही मिली है तुम्हें ये हयात क्या।
किस गफ़लत में जी रहे हो अजय तुम भी
रत्तीभर भी बदल सकते हो यूँ हालात क्या।