2212 2212
गर नाव है मँझधार में।
हम क्या करेंगे प्यार में।।
है दोस्ती हम भूलते -
जब खोट पाई यार में।
जब-जब कलम का काम हो-
तब क्या रखा तलवार में।
ये फूल तो बस फूल हैं-
चुभना रहा है खार में।
बस ख्वाब में आते रहे -
दिल टूटता दीदार में।
मिलता दगा है क्या करूँ-
बहरूपिया संसार में।