आज फिर अनकहे पैगाम लिख रहा हूँ,
अपनी खोयी हुई दास्ताँ लिख रहा हूँ।
होंठों पे आकर भी जो दिल से न निकली,
आज उस अपने की पहचान लिख रहा हूँ।
चेहरे पे हंसी और आँखों में नमी,
कहीं अपने ही निशान लिख रहा हूँ।
बीते हुए पलों को समेटे हुए,
उन किस्सों को दूसरों के नाम लिख रहा हूँ।
ज़रूरतों ने बना दिया हमे मजबूर,
उस मजबूरी में अपने अरमान लिख रहा हूँ।