जल रहा है वतन

जल रहा है  वतन,आप   गज़ल कह रहे है
सदमे में है  जिहन  आप  गज़ल कह रहे हैं
शर्म कुछ तो  करें बेबसी पे आप   अपनी
जख्मी  है ये बदन  आप गज़ल  कह रहे हैं ।
घर जले  , लूटी अस्मत , गई कितनी जानें 
उजड़ गया चमन,आप गज़ल कह रहे हैं ।
कर ली  खुलूस ने  खुदकुशि खामोशी से
सहम गया अमन ,आप गज़ल कह रहे हैं ।
खौफज़दा चीखों में लाचारगी के दर्दोगम,
है दिल में  दफ़न ,आप  गज़ल कह रहे हैं ।
दोस्ती,भाईचारा,और भरोसे की लाशों ने
ओढ़ ली है कफ़न ,आप गज़ल कह रहे हैं ।
रास्ते,गलियाँ,घर बाज़ार सब वही है मगर
है कहाँ अपनापन आप गज़ल  कह रहे हैं ।


तारीख: 07.02.2024                                    अजय प्रसाद









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