मैं कहाँ भटकता चला आया

मैं कहाँ भटकता चला आया।
उसके घर बारहा चला आया।

मैं पता तेरा ढूढ़ने में ही,
जाने कब मयकदा चला आया।

जब वहाँ बात इश्क पे आई,
मैं वहाँ से उठा, चला आया।

कुछ नही जब बचा तो इस दिल में,
दौड़ा-दौड़ा खुदा चला आया।

हुस्न औ इश्क उनकी वो महफ़िल,
मैं वहाँ से भला चला आया।

'देव' कब ये कहोगे के इक रोज,
दूर था जो गया, चला आया।


तारीख: 22.09.2017                                     देव मणि मिश्र









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