नये दौर

नये दौर में नये मिज़ाज के साथ
तोड़ रिश्ते कल का,आज के साथ ।
हुस्नोईशक़ से परे,हक़ीक़त से भरे
कहूंगा गज़ल नये अंदाज़ के साथ ।
तारीफें नहीं तो ,तन्कीदें ही सही
है मुझे कबूल ,पर एतराज़ के साथ ।
आँखें मूंद कर आशिक़ी मंजूर नहीं
शायरी मेरी चलेगी,समाज के साथ ।
भले गूजर जाऊँ गुमनाम गम नहीं
नहीं चलना अजय रिवाज के साथ ।
 


तारीख: 11.03.2024                                    अजय प्रसाद









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है