तेरी बातें,तेरी सोच

 

तेरी बातें,तेरी सोच,अंदाज तेरे
मैं क्यों मानूं बता रस्मों रिवाज तेरे

हमारा भी अलग रूतबा है जमाने मे
तेरे लियें होंगे अपने मिज़ाज तेरे

अगर मैं चेहरा निहार लेता यकीनन
आईनों मे चमक उठते दराज तेरे

दुआऐं ले और सफर की इब्तेदा कर
काफिले हो जायेंगे उम्रदराज तेरे

कोई भी चराग़ बदला नही है अब तक
घरों मे रौशन हैं हू बा हू सिराज तेरे

ऐ"आलम"मैं तुझे ना जान पाया कभी
पोशीदा रहे कई खुद से ही राज तेरे
 


तारीख: 08.02.2024                                    मारूफ आलम









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