मै भी किसान आंदोलन में चला

 मुंशी प्रेमचंद के गांव लमही के पास, होरी, धनिया और उसका बेटा गोबर [अब गोबरधन ]अपने घर में टी वी देखते हुए खुसर पुसर करने लगे। धनिया ने होरी से पूछा - ई लकड़ी का हल जैसा खिलौना लेकर ई लोग का हो हल्ला मचा रहे हैं ? होरी ने बताया कि ये लोग किसान है और दिल्ली में आंदोलन कर रहे हैं। फटी आखों से टी वी  में झांकती पूछने लगी-  ओ दईयया! तो ई गोरा चिटट्ा गइयया के दूध से धुला गोबर जैसा बबुआ......... इन किसानन को का समझात बा ? होरी ने बताया- बबुआ कहत हैं कि गेहूं की बजाय इस बरस आलू लगाओ। ये सब का एक अईसी मसीन बाटेंगे जिसमंे एक तरफ से आलू घुसेडं़ेगे, तो दूसरी तरफ से सोना निकलेगा। धनिया की उत्सुकता बढ़ी - और का का समझावत हैं ?
  होरी ने अपने टी वी अनुभव से समझाया- अरे बहुत बड़े विग्यानिक हैं। बता रहे हैं कि धान के पेड़ लगाओ। हरी मिर्च की बजाय लाल मिर्च उगाओ, उसका रेट ज्यादा मिलता है। अउर बता रहे हैं गन्ने का रस , गन्ने से नहीं मसीन से निकलता है। अगली बार सब खेतों में टाइलें बिछवा देंगे ताकि किसान के पैर कीचड़ से बचे रहें।
   गोेबर   ने चैनल बदला। ट्रैक्टर, ट्र्ालियां धड़ाघड़ रंग बिरंगे बैनर सजाए चल रही थी। हरी, पीली, सफेद, लाल ,टोपियों, पगड़ियों में सजे लोग झंडे, डंडे,अंडे, अपने नए नए फंडे लेकर नारे लगा रहे थे। छोटे बच्चे, अमरीका कनाडा से आए जीन वीन पहने कह रहे थे - हम भी किसान हैं। धनिया बड़े अचरज से पूछने लगी- ई बच्चा लोगन किसान हैं तो स्कूल कौेन जाता है ?
  गोबर ने समझाया - अम्मां.....स्कूल बंद हैं, ऑन लाइन क्लासें चल रही हैं, दफतर का काम घर से चल रहा है, फसल बीजी जा चुकी है,  कोरोना की वजह से विदेश में भी कामकाज ठप्प है......ये समय घूमने फिरने का है।
 होरी ने फिर चैनल बदला और धनिया पूछने लगी- ये सब चबैना चबा रहे हैं? गोबर ने कलेरिफिकेशन दी- अरे नहीं अम्मा ई सब जन, काजू किसमिस बादाम चबा रहे हैं। कई कई दिन खाना खाने की जरुरत नहीं पड़ती। बदन मां इतनी गर्मी आ जात है कि  ठंडी मां,  कपड़ा उतार के नारा लगा सकत हैं। धनिया ने फिर कुछ देखा और पूछने लगी- उ हथवा में रोटी के उपर सब्जी बिछा के का खावत बा ? गोबर बताने लगा- ई अंग्रेजी रोटी होवत है। इसको पिज्जा कहत हैं। भात के साथ कोई दाल नहीं खा रहा। अरे ये बिरयानी है। कैमरा दूसरी ओर घूमा । धनिया फिर पूछ बैठी - हियां बहुत गाना बजाना चल रहा है। पप्पू की सादी है का ? होरी ने समझाया- पगली ये बड़े किसान हैं। ढोल मजीरे लेकर फगुवा थोड़े ही गाएंगे ? अपने मनोरंजन के लिए  डी.जे  वी जे साथ लेकर आए हैं।
 गोेबर ने फिर चैनल चेंज किया। कुछ लोग डट के ब्रेकफास्ट कर रहे थे । उनको अनशन पर बैठना था। धनिया कभी अपनी टांट वाली छत देखती तो कभी टी वी पर ,इंम्पोर्टिड तंबुओं में लगे झक झक करते रजाई गददों पर बैठी महिलाएं, बिसलेरी की बोतल साथ में रखे ,चाय का आनंद लेते देखती रही। एक जगह वाशिंग मशीन में कपड़े धुल रहे थे।  धनिया   को याद आया ......नदी पर जाकर धोती, धोनी और सुखानी है।
 वहीं तेल मालिश - बूट पालिश और मसाजर में पैर फंसाए आधुनिक किसान को देखकर होरी के पैरों में भी दर्द महसूस होने लगा। धनिया ने उसकी आखों में भाव पढ़ा औेर दोनों हाथांे से उसके पैर दबाने लगी। धनिया बोली- लागत है कुंभ का मेला चल रहा है। वहां भी ऐसा ही इंतजाम था।
गोबर  ज्यों ज्यों चैनल बदलता, उसके दीदे फटे के फटे रह जाते।  उसका मन मचलने लगा। गोदान फिल्म के  महमूद की तरह और वह भी गुनगुनाने लगा - पिपरा के पतवा पे सरीखे डोले मनवा , हियरा में उठत हिलोर कि चल अब देसवा की ओर ... ।
 अब उसका अल्टीमेट.... डेस्टीनेशन  ’देसवा’ दिल्ली बन गया। देश में कुछ भी, कहीं भी हो, एक ही नारा गुंजायमान रहता है - दिल्ली चलो। गोबर भी बार बार होरी से अनुनय करने लगा- बाबू ! हम भी किसान आंदोलन में जाउंगा। होरी ने चिंता जताई -अरे हियंा काम काज कउन करे ? गोबर ने सपष्ट किया - अरे अब जुताई बुवाई हो चुकी है। कटाई तक आंदोलन खत्म हो जाएगा। सब अपने अपने घर लौट जाएंगे मेैं भी आ जाउंगा। होरी ने समझाया- अरे बबुआ! हम काहे आदोलन करें? गोबर किसानों की तरह अड़ गया । होरी को डांटते हुआ कहने लगा - अरे तुम न कभी दिल्ली गए हो न कभी जाओगे । अब मौका मिला है... इसी बहाने दिल्ली दरसन हो जाएगा। जाने का जुगाड़ हो जाएगा। बस एक डंडा , एक झंडा, एक हरी  टोपी चाही। किसी भी ट्रै्क्टर को हाथ देंगे वो दिल्ली पहंुचा देगा। वहां किसान लोगन का   फुल इंतजाम है। अम्मां तुम जरा भी चिंता न करना।ं बस 24 घंटे टी वी देखते रहना । हम उसमें बोलूंगा- किसान बिल वापस लो.... वापस लो। तुम भी हाथ हिला हिला के समर्थन करना-   बोलना हां वापस लो वापस लो। 
     और सुबह सुबह गोबर यह गाता हुआ एक ट्र्ाली के पीछे लटक गया.....हियरा में उठत हिलोर कि चल अब दिल्लिया की ओर।


तारीख: 08.02.2024                                    मदन गुप्ता सपाटू









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है