देवलोक में कोरोना 

 

शाम के समय एक ऋषिवर पृथ्वीलोक के ऊपर से गुजर रहे थे। आसमान साफ था, प्रदूषण और एयर ट्राफिक का नामोनिशान नहीं था। ये बदलाव देख उनका हृदय गदगद हो रहा था। तभी उनकी नज़र धरती पर पड़ी। सारे शहर सुनसान थे। मेट्रो सिटी की वे सड़कें जो ट्राफिक से खचाखच भरी रहती थी वे भी इस समय निर्जन थी। इंसान नाम का कोई प्राणी बाहर दिखाई नहीं दे रहा था। इंसानों को छोड़कर सब यथावत चल रहा था। पशु-पक्षी अपनी लय में थे। कोकिल आज भी सुमधुर स्वर में गुनगना रही थी। गौरेया के बच्चे खुली सड़क पर खेल रहे थे।

उनको आश्चर्य हुआ कि आखिर बात क्या है? तकरीबन तीन महिने पहले पृथ्वी भ्रमण पर निकले थे तब में और अभी में जमीन-आसमान का फर्क दिखाई दे रहा है। पहले लोगों के अलावा कुछ दिखता न था। मोटर-गाड़ियां, भोंपू, धुंआ, ट्राफिक जाम के अलावा कुछ नहीं था जो वे आॅब्जर्व करते। इंसानों द्वारा आपस में की जानेवाली माथाफोड़ी और मगजमारी के आगे कोकिल का स्वर भी दब हुआ रहता था। आज सब उल्टा है। महाऋषि से रहा नहीं गया। चिंतित स्वर में उन्होंने तत्काल सूचना एवं प्रसारण मंत्री नारद जी का आह्वान किया।

‘‘नारायण...नारायण’’ के स्वर के साथ नारद जी प्रकट हुए और ऋषिवर को प्रणाम किया।

‘‘सदा सुखी रहो देवऋषि!’’ उन्होंने दायां हाथ ऊपर उठाते हुए आशीर्वाद दिया।

‘‘कैसे याद किया प्रभु इस गण को।’’

‘‘नारद जी ये पृथ्वीलोक में क्या चल रहा है। कोई इंसान दिखाई क्यों नहीं दे रहा है?’’

‘‘आपको नहीं मालूम प्रभु?’’ नारद जी ने आश्चर्य से पूछा।

‘‘नहीं ! आपने बताया नहीं तो हमें कैसे मालूम होगा।’’

‘‘क्षमा करना प्रभु! मैंने सारी सूचना अपने फेसबुक पेज पर डाली थी। ट्वीटर पर हर एक घंटे में ट्वीट करता रहता हूँ। इंस्टा पर लेटेस्ट फोटो भी अपलोड कर रहा हूँ।’’ उसके बाद नारदजी ने उनके चेरहे की तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘क्या आप मुझे फोलो नहीं करते प्रभु।’’

‘‘नहीं ऐसी बात नहीं है। मेरा जियो का रिचार्ज खत्म हो गया था। सोचा कुछ दिन ध्यान में लगा दूँ बाद में रिचार्ज करवाउंगा।’’ महाऋषि ने स्पष्ट करते हुए कहा, ‘‘आखिर बात क्या हो गई जो लोग घरों में कैद हो गए।’’

‘‘कुछ नहीं प्रभु! एक कोरोना नाम के वायरस ने पृथ्वी लोक पर आक्रमण कर दिया।’’

‘‘अच्छा...'' कुछ देर शांत भाव से सोचने के बाद ऋषिवर बोले, ''इस विपत्ति की घड़ी में देवताओं को इंसानों की मदद के लिए आगे आना चाहिए।’’

‘‘क्षमा करना प्रभु! सारे देवता इस समय पृथ्वी पर ही मौजूद है।’’ नारद जी ने कंधे उचकाते हुए कहा। 

‘‘मुझे तो दिखाई नहीं दे रहें।’’  पृथ्वी पर चारों तरफ देखते हुए बोले। 

‘‘इंसान तो ठीक; किंतु आप भी प्रभु...'' नारद जी ने रहस्यमय अंदाज़ में कहा। 

''क्या मतलब?'' 

''आपको तो विदित है कि पृथ्वीलोक पर जाने के लिए प्रोटोकाॅल बना हुआ है जिसके तहत कोई देवता अपने मूल स्वरूप में पृथ्वी पर नहीं जा सकता। इस वक्त सारे देवता डाॅक्टर्स के रूप में, पुलिस के रूप में, सफाई कर्मी और दानदाता के रूप में पृथ्वी पर लोगों की मदद कर रहे हैं। गरीबों को खाना खिला रहे हैं। बीमारों की चिकित्सा कर रहे हैं। लगता है आप भी इंसानों की तरह पहचानने में चूक गए प्रभु... नारायण... नारायण... '' 


तारीख: 18.04.2020                                    प्रेम एस. गुर्जर









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