प्रशन

साकेत आज कुछ उदास सा लग रहा था | यूं तो सभ सामान्य था | वही रोज की तरह ऑफिस साथ जाना , वही हंसी मज़ाक पर पुराना दोस्त है , ऑफिस का साथी है , लम्बे समय से साथ है तो उसके चेहरे की बनावटी मुस्कुराहट जिसके जरिये वे अपनी उदासी छुपाना चाह रहा था मुझे उसका अहसास हो गया था | जब कोई दिल से खुश न हो और केवल उस भाव को छुपाने के लिए प्रयत्न स्वरूप समान्य व्यवहार करने की कोशिश करे तो उसके बेहद करीबी लोगो को असामान्य व्यवहार को भापने मे वक्त नहीं लगता |

क्या साकेत से पुंछ लेना चाहिए ! शायद नहीं क्योकि अगर कोई बड़ी बात होती जिसमे मै उसकी मदद कर सकता तो वह मुझसे निसंकोच कह देता ! हो सकता है कोई ऐसी बात हो जो वह नहीं बताना चाह रहा हो | मन मे जानने की उत्सुकता हो रही थी पर किस तरह से भावो को व्यक्त करू इसका निर्णय नहीं ले पा रहा था |

दोपहर मे खाना मै और साकेत साथ ही खाया करते थे , मज़ाकिया लहजे मे कहा क्यूं भाई आज उदास सा लग रहा है , भाभी से झगड़ा हुआ क्या ! फिर उसी बनावटी मुस्कान के साथ उसने बात को टालने का प्रयास किया | नहीं ऐसी कोई बात नहीं है | देख भाई ऐसा है दुख , तकलीफ , बांटने से कम होती है | हम कॉलेज से साथ है अगर कोई परेशानी है तो साझा कर सकते हो | कुछ देर के विराम के बाद अचानक साकेत बोला  तुझे अपने कॉलेज की ‘तृप्ति’ याद है ? वक्त जैसे कुछ पलो के लिए रुक सा गया और सालो पीछे जाकर ठहरा |  

तृप्ति साकेत की बहुत अच्छी दोस्त थी जबकि स्वभाव से दोनों बिल्कुल अलग थे | तृप्ति कम बोलती थी और ज्यादा सोश्ल नहीं थी आसानी से घुल मिल नहीं पाती थी लोगो से | इसके ठीक विपरीत साकेत अच्छा वक्ता , सबसे मित्रता रखने वाला , व्यवहार कुशल व्यक्तित्व था जिसके कारण कॉलेज के सहपाठियो से लेकर शिक्षको से उसका व्यवहार और मेलजोल था |

साकेत का अच्छा दोस्त होने के नाते मुझे जितना पता था उस हिसाब से तृप्ति और साकेत केवल अच्छे दोस्त थे | जो तृप्ति औरों से कम बोलती थी वह साकेत से घंटो बात कर लिया करती थी उनका आपसी तालमेल अच्छा था दोनों एक दुसरे को खूब ही चिढ़ाया करते , एक दूसरे से लड़ भी लिया करते थे और अगले ही पल साथ हँसते भी थे | कभी इस बारे मे साकेत से बात होती तो यही कहता कि प्रेम जैसा कुछ नहीं है बस हमारी अच्छी पटती है आपस मे |

याद आया कुछ साकेत ने कहा , तो निद्रा टूटी हाँ याद है पर आज इतने सालो बाद उसकी याद कैसे आई | यूंही बस कल पुराने दस्तावेजो मे रखा एक कागज मिला | यह कविता सालो पहले मैंने तृप्ति के लिए लिखी थी | मेरा लिखा कुछ छपता तो सबसे पहले वो उसे पढे इसकी उसे चेष्टा रहती थी और इत्तेफाक देखो आज जब सालो बाद ये कागज सामने आया तो आज भी 8 अप्रैल है |

कई सवाल मन मे उठने लगे जिनका जवाब साकेत से जानना था | साकेत क्या तुम उससे प्यार करते थे ? नहीं भाई वंहा तक बात पंहुची ही नहीं | मैंने उससे कई बार जानने की कोशिश की पर उसने हर बार यही कहकर बात टाली कि हम अच्छे दोस्त है | खैर मैंने भी कभी ज्यादा कोशीश इसलिए नहीं कि क्योकि मुझे पता था हमारी जातियां अलग अलग है और मेरे लिए समाज के विरुद्ध  जाना संभव नहीं होगा फिर भी मै हिम्मत जुटाने की कोशिश कर लेता मगर उसकी तरफ से कभी कोई स्पष्टता नहीं दिखाई गयी |

बावजूद इसके हम अच्छे दोस्त थे | कॉलेज छूट जाने के बाद हमारी बाते कम जरूर होने लग गयी थी | मैंने कई बार जानने का प्रयास किया कि किस वजह से हमारे बीच दुरियाँ आई है | आखरी बार जब हमारी बात हुई तो उसकी आवाज़ मे वो उत्सुकता ही नहीं थी जो पहले हुआ करती थी मुझे अहसास हो रहा था कि अब शायद यह दोस्ती उसके लिए बोझ से ज्यादा कुछ भी नहीं है | उसी दिन मैंने उसका नंबर फोन से हटा दिया और उसी रात ये कविता लिखी थी उस दिन तारिख थी 8 अप्रैल | उसके बाद न तो कभी उसका कोई संदेश मिला न कभी कॉल आया | वक्त्त के साथ साथ सारी यादे धुंधली हो गयी पर इस कागज ने कल से मन को थोड़ा बेचैन सा कर दिया है |

तुम्हारे बच्चे है , सुषमा भाभी जैसी पत्नी है जो कितना ख्याल रखती है तुम्हारा , अच्छा खासा सुखी परिवार है और तुम सालो पुरानी किसी याद को लेकर उदास हो ये तो कोई सही बात नहीं है मैंने झुँझलाते हुए कहा |

ऐसी बात नहीं है यार मै अपने जीवन मे बहुत खुश हूँ | बच्चो मे तो मेरी जान बस्ती है और सुषमा से अजीज तो कोई हो ही नहीं सकता | उससे अच्छी जीवन संगनी कोई हो ही नहीं सकती थी | मेरे मन मे कुलबुलाहट केवल इस बात की है कि मेरी और तृप्ति की दोस्ती किस कारण टूटी इस प्रशन का उत्तर मुझे आज तक नहीं मिला | उस कारण को जानने की चेष्टा आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई है |

अपने मन का गुबार निकलने से अब वो थोड़ा हल्का महसूस कर रहा था | तुम्हारी कहानी सुन के मुझे फरहत एहसास की कुछ पंक्तियां  याद आ रही है कहो तो अर्ज करू ! तुम्हें कौन रोक सकता है जनाब , मुस्कुराते हुए साकेत ने उत्तर दिया पर इस बार मुस्कान बनावटी नहीं थी | उसे सवाल का जवाब भले न मिला हो पर अब उदासी के बादल छट चुके थे |

तो सुनो फरहत एहसास लिखते है :-

“एक रात वो गया था जहां बात रोक के , आज तक रुका हूँ वंही रात रोक के ”


तारीख: 06.04.2020                                    कल्पित हरित









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