स्त्री और प्रेम

प्रेम एक एहसास है, जो दिल से होता है, जिसमें स्नेह, प्यार, भाव और सबसे ज़्यादा विश्वास होता है.प्रेम में शर्तों और अपेक्षाओं का कोई स्थान नहीं होता.प्रेम बंदिशों पर भी नहीं टिका होता.

प्रेम में सबसे बड़ी चीज होती है वो है इज्जत. जहाँ इज्जत, सम्मान, भरोसा और एक दुसरे के लिए कद्र ना हो वहां प्रेम बेमानी होता है, उसका कोई मोल नहीं होता.

स्त्री' ईश्वर की गढ़ी वह खूबसूरत कृति है, जिसके बिना सृष्टि की कल्पना ही नहीं की जा सकती. गरिमा है, ममता की मूरत है, अन्नपूर्णा है, कोमल भाषा है, निर्मल मन और स्वच्छ हृदय है, समर्पिता है... स्त्री के रोम रोम में प्रेम बसा है, लेकिन "एक स्त्री को प्रेम करना आसान नहीं है."

एक स्त्री प्रेम में अपने प्राण भी न्योछावर करने को तैयार हो जाती है बशर्ते उसमे विशवास तो हो लेकिन कोई शर्त और बंदिश ना हो.

एक स्त्री तुम्हें सच्चे मन से प्रेम करती है क्योंकि झूठ की डोर में उसने रिश्तों का बांधना नहीं सीखा. वो चाशनी में डुबोकर अपनी बात नहीं कहती और सच बोलती है, तो उसे और उसके प्रेम को स्वीकार नहीं किया जाता.

तुम स्त्री को प्रेम तभी करते हो, जब वह तुम्हारी जी हज़ूरी करे, तुम्हारी गलत बातों को माने.. लेकिन वो तो तब भी तुम्हे प्रेम करती है, चाहे तुम उसकी बात मानो या ना मानो...

एक स्त्री को भी अपनी बात रखने का अधिकार होता है, क्या तुम भी उसके तर्क वितर्क में उसका साथ डोगे? उसका पक्ष लोगे? उसे भी फ़िज़ूल की बहस करना अच्छा नहीं लगता. लेकिन तब भी तुम उसे कितने अपशब्द कह डालते हो.

एक स्त्री तुम्हारे प्रेम में अपने आपको सजाती- संवारती है,  और तुम प्रेम ना देकर उस पर ही लांछन लगा देते हो.

एक स्त्री का अपना व्यक्तित्त्व, अपनी पहचान और आत्मविश्वास होता है.. लेकिन तुम चाहते हो की तुम्हारे प्रेम के बदले वो सब कुछ न्योछावर कर दे.

वो मकान को घर बनाती है, उसे अपने प्रेम से संवारती है, लेकिन क्या वो उसका घर होता है...वो तुम्हारी पत्नी, प्रेयसी और दोस्ती के सारे फ़र्ज़ निभाती है  लेकिन क्या तुम उसे स्त्री होने का  भी अधिकार देते हो?

एक स्त्री जब तुमसे प्रेम करती है, तो वह परमात्मा के रूप में  तुम्हे  स्वीकार करती है, लेकिन तुम तो  उसे केवल मिटटी की देह  समझते हो.  क्या उसके प्रति  यही तुम्हारा प्रेम है?

कहते हैं की स्वामी और सेवक में प्रेम नहीं होता लेकिन एक स्त्री दासी बनकर "तुम" जैसे स्वामी से प्रेम करती है, लेकिन क्या, जिसे तुम, अपनी दासी समझते हो, उससे प्रेम कर सकते हो?

स्त्री हर किसी की खुशी को देखकर चलती है कि कोई उसकी वजह से परेशान तो नहीं और खुद की खुशी बिल्कुल भूल ही जाती है।

स्त्री सपने तो देखती है लेकिन उसके सपने को बिल्कुल कुचल दिया जाता है स्त्री भावुक होती है और डर का अभाव उसमे भी रहता है स्त्री से प्रेम करो क्योंकि वह प्रेम की मूरत है.

अगर तुम स्त्री के प्रति सच्चा प्रेम चाहते हो तो अपनी सोच, अपने विचार, अपने आस पास का माहौल बदलो. उसका सम्मान करो. निःस्वार्थ रूप से उनसे प्रेम बनाए रखने की कोशिश करते हो तब आपका रिश्ता एक आदर्श है।

कठिन से कठिन परिसिथतियों में उसका साथ दे, उसके सपनों का सम्मान करें, उसे भी निश्छल प्रेम करे.आप स्त्री का प्रेम चाहते है तो उसके रंग रूप कद काठी की और  ध्यान ना देकर उसकी आंतरिक सुंदरता की कद्र करें.


तारीख: 20.02.2024                                    मंजरी शर्मा









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