अतिशयोक्ति

        ( मनहरण कवित्त छन्द )

 

 

 

                अतिशयोक्ति

 

 

 

अतिशयोक्ति अत्यधिक असम्भव अज़ीब,

रवि रुका नभ में माह महाकवि माना।

रवि रथ था थका खड़ा-खड़ा खगोल मध्य,

महीने का दिवस रोका रजनी का आना।

प्रभाकर पल रुके तो सृष्टि समाप्त सारी,

पाखण्ड पहचानो जन जागृति जगाना।

“मारुत” मर्म लोग-लुगाई जन जाने नहीं,

भेद भानू का तुलसी तुमने कैसे जाना?

 

 

 

         

 


तारीख: 11.07.2025                                    पवन कुमार "मारुत"




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