
( मनहरण कवित्त छन्द )
अतिशयोक्ति
अतिशयोक्ति अत्यधिक असम्भव अज़ीब,
रवि रुका नभ में माह महाकवि माना।
रवि रथ था थका खड़ा-खड़ा खगोल मध्य,
महीने का दिवस रोका रजनी का आना।
प्रभाकर पल रुके तो सृष्टि समाप्त सारी,
पाखण्ड पहचानो जन जागृति जगाना।
“मारुत” मर्म लोग-लुगाई जन जाने नहीं,
भेद भानू का तुलसी तुमने कैसे जाना?