अन्तिम-यात्रा

 

जिन्दगी   तूने   किनारा   कर   लिया
मौत का चिर तम डगर  में भर लिया ,
अज्ञ हम, निष्फल  जतन  करते  रहे
जिन्दगी   की   चाह   में   मरते   रहे।

हैं रुकी  लडिया़ँ अचानक  साँस  की
सज  चुकी  है  खाट देखो  बाँस  की ,
फूल  से  आवृत्त   होकर   के    चला
रश्मियों  से  हीन  हो   सूरज    ढला।

है  वृथा  सब   रत्न , कंचन  हार   भी
व्यर्थ   कदमों   में   झुका  संसार  भी ,
काम न वैभव ,किला,न मकान आता
थामने   सबको   वही  मसान  आता।

भस्म   होता   गात   बनता   छार   है
मृत्यु  के  कर  जिन्दगी   का   तार  है ,
जिन्दगी  चलती  हुई   है  एक  छाया
तन हमेशा  मौत  के  ही काम  आया।


तारीख: 06.04.2020                                    अनिल कुमार मिश्र









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