जिन्दगी तूने किनारा कर लिया
मौत का चिर तम डगर में भर लिया ,
अज्ञ हम, निष्फल जतन करते रहे
जिन्दगी की चाह में मरते रहे।
हैं रुकी लडिया़ँ अचानक साँस की
सज चुकी है खाट देखो बाँस की ,
फूल से आवृत्त होकर के चला
रश्मियों से हीन हो सूरज ढला।
है वृथा सब रत्न , कंचन हार भी
व्यर्थ कदमों में झुका संसार भी ,
काम न वैभव ,किला,न मकान आता
थामने सबको वही मसान आता।
भस्म होता गात बनता छार है
मृत्यु के कर जिन्दगी का तार है ,
जिन्दगी चलती हुई है एक छाया
तन हमेशा मौत के ही काम आया।