दशहरा


रावण लाख बुरा सही पर घबराता तो था

सीता को बिन मर्जी छूने से कतराता तो था

ख़ता एक बार हुई थी चलो अब भूल भी जाएँ

क्यों न अब एक नयी तरह से दशहरा मनाएँ


जो घिनोने अपराध हो रहे

उन पर कुछ तो कदम उठाएँ

हैवानियत करने वालों को ही

क्यूँ न नया रावण बनाएँ

 

हर रोज़ दिवाली होली है जब

तो क्यों न रोज़ दशहरा मनाएँ

पुतले को जलाना बंद करके

हर दशमी को कलयुगी रावण को जलाएँ

 

सरेआम बीच चौराहे पे उस रावण को बांधा जाए

फिर पीड़िता ही राम बने और निशाना दागा जाए

बंद करो अदालत में जाना

अब नया इतिहास बनाना होगा

कुछ नहीं होगा उन बंद आँखों से

हमें ख़ुद ही अब इन्साफ पाना होगा


तारीख: 18.04.2020                                    प्राची दीपक गोयल









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