ढलता सूरज

बादलो  में छुपा आधी -अधूरी रौशनी फैलाता ,
सुना -अनसुना सा गीत है गाता ,
ढलता हुआ मगर फिर भी जगमगाता ,
ये ढलता सूरज !

उगते  हुए सूरज को तो सब सलाम करते हैं ,
पर क्यूँ ढलते हुए सूरज से दूसरी तरफ मूंह करते हैं ,
सुनहरी चांदनी की रोशनी लेकर आता ,
ये ढलता सूरज !

ढलते सूरज का जो साथ है देता ,
वो आसमान कहलाता ,
ढलते मानव का जो साथ न छोड़ता ,
वो सच्चा इंसान है कहलाता !

जेसे न है अंत प्रकृति का ,
वैसे न है अंत मेरे भावों का ,
और ऐसे ही रोज दिखता रहेगा ,
ये ढलता सूरज!


तारीख: 23.06.2017                                    सुरभि बंसल









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