तुम जन्नत से ही आयीं थीं
वहां को ही तुम जाओगी,
जाने से पहले रुको ज़रा
रूककर हमसे से यह कहो ज़रा,
कि वापस कब तक आओगी ?
रंग तुम्हारा दिन सा है
और हम जैसे हों रात घनी,
तुमसे ही तो दिन चलता है
तुमसे ही जैसे शाम बनी |
जन्नत को हम मंज़ूर नहीं
पर वहां हमें भी है जाना,
कैसी दिखती है जन्नत यह
इतना रूककर कहते जाना |
आते जाते भूले से ही
इस समय को तुम छोड़े जाना |
कैसे होगा यह पता नहीं
जन्नत ही तुम तोड़े लाना ?
दिन भी जल्दी ही आएगा
और रात जहाँ पल भर होगी,
क्या चलोगी मेरे संग वहां
जहाँ जन्नत मेहमां हर पल होगी |
होगा ना जहाँ पर कष्ट कोई
ऐसा एक कल हम लाएंगे
दिन मिलेगी रातों से ऐसे
जैसे संग ही कल आएंगे ,
आते जाते तुमको देखा
तो समय भी जैसे ठहर गया,
कब आयीं थी
कब जाओगी,
अब तो दिन का हर पहर गया |
पर्वत हो जहाँ उम्मीदों के
दुखों का गाँव वीराना हो,
चंदा हो जहाँ पर मख़मल का
और दिन जिसका दीवाना हो |
आशाओं का एक दरिया हो
जो हर पल कल-कल बहता हो,
उस दरिया ही के कोने में
सुख डेरा डाले रहता हो |
इस जहाँ के तुम उस पार चलो
हलके से धीमे पाँव चलो,
मेरे सर पर हो धूप घनी
तो बनकर फिर तुम छाँव चलो |
डरती हो तुम कैसा होगा
जैसा है कहा वैसा होगा?
तुम चाहोगी जैसा जैसा
सबकुछ वैसा वैसा होगा |
ना डरो अभी,
बस चलो अभी
तुम निष्चय ही वहां हैरान होगी
क्या चलोगीे मेरे संग वहां,
जन्नत भी जहाँ मेहमां होगी ?
अब चलो भी मेरे संग वहां,
जन्नत भी जहाँ मेहमां होगी |