
( मनहरण कवित्त छन्द )
परजीवी
पलते परजीवी पराये पैसों पर पापी,
कामचोरों कभी कुछ काम कर लीजिए।
काले-काले कलुषित विषधर व्याल बहु,
अन्धविश्वासी अन्धभक्तन का क्या कीजिए।
विवेकशील विज्ञानमय वाणी बोलियेगा,
न प्रचार पाखण्ड-पंक का कभी कीजिए।
“मारुत” मानव को कहता पुकार-पुकार,
मेरे मीत चढ़ावा चढ़ाना बन्द कीजिए।।