प्रिया

अच्छा बताओ 
या क्यूं ना कुछ जुगाड़ बनाओ,
मै हवा बन जाऊं और 
तुम अपनी ही सांसों में मुझको पहनाओ।

सुनो ना, 
कोई ऐसी तरकीब बनाओ,
मैं आंखें खोलूं तो,
तुम ही झील बन जाओ।


कुछ तो ऐसा जादू दिखलाओ,
कि 
मैं हंसू तो कारण,
रोऊं तो खुशीयां
गुस्सा उं तो धड़कन,
मेरे शंका में दर्पण भी
तुम ही बन जाओ।।

मतलब कुछ तो ऐसा चमत्कार दिखलाओ,
की मेरे....

घबराने पे साहस,
थकने पे मंजिल,
फिर रस्ते का साथी,
और जिद्द में जरूरत भी तुम ही बन जाओ।


कुछ तो ऐसा करामात दिखाओ,

कि मेरे सोने पे सपने,
फिर जगने पे अपने,
गर्मी में सर्दी और
सर्दी में तपने का कारण बन जाओ।

कुछ तो एसी व्यवस्था बनाओ,
की उलझनों में तरीका,
जीने का सलीका,
मेरे होली के रंग सा
और दीवाली में दीपिका भी 
तुम ही बन जाओ।।

मेरे लेख में कलम सी,
गायकी में सुरों सी,
मेरे नर्तन कि घुंघरू,
और कवि - नज़रों सी भी
 तुम ही बन जाओ।।


मेरे अंदर
 की आवाज़
 तुम ही प्रिया हे,
बाहर के नज़ारे भी
 तुम ही बन जाओ।।
तुम ही तुम हो हर पल,
यदि हो मेरा कल,
चाहे मुझको तू
ले चल,
अपने सामियाने,
हर इक मोड़ पे तू,
हर इक छोड़ पे तू,
तुही तान बन जा
मेरे डोर की भी,
मैं प्यासा पथिक हूं
तुम..... पानी ही बन जाओ।

कुछ तो ऐसा बवाल मचाओ,
की जवाब मेरे 
हर सवाल का तुम ही बन जाओ।।


तारीख: 18.04.2020                                    अभिजीत कुमार









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