रिश्ते में
दरार है
प्यार की न कहीं
कोई दरकार है
जीवन के इस मोड़ पर
मेरी न जीत
न ही कोई हार है
समझ आ गया है
मुझे
इस दर्पण का
दीवार से गिरकर
टूटना और
टुकड़ा टुकड़ा बिखरकर
फर्श पर
औंधे मुंह
पेट के बल
लेट जाना
मुझे तो बस इतना करना है कि
इन्हें पलटकर
इनके टुकड़ों को सहेजकर
अब भी अपना चेहरा
मुस्कुराते हुए
अपने गम छिपाते हुए
इनके दुख दर्द बांटते हुए
इनके अन्तर्मन में
कहीं गहरे उतरकर
देखना है।