तुम “तुम” रहना

 तुम तुम हो, वो वो है

तुम्हारी भुजाएँ तुम्हारी बनावट

तुम्हारी भावनाएँ तुम्हारी मुस्कुराहट

सब तुम्हारी हैं

जो ख़ास हैं तुम्हारी

फिर तुलना क्यूँ

 

तुम रचिका हो, तुम नीड़ भी

तुम वाहिदा हो, तुम यादवी भी

तुम तो सबरंगी हो

तुम हो नायशा

फिर तुलना क्यूँ

 

तुम पाखी बनो , पंख फैलाओ

उड़ान को “वो” की सीमा से ना मापो

तुम्हारी हद अपार भी हो सकती है

शब्दार्थ ना ढूंढो

उसकी चाल से तुलना क्यूँ

तुम उड़ो

 

तुम हो मिहिका, और बनो

मत मारो इसे क्यूँकि “वो” नहीं शीतल

 

तुम्हारी आवाज़ अलग है

तुम्हारी हरकतें भी

उस “अलग” को “अलग” की तरह जिओ

 

मांगो अपने हक़

लेकर ही दम लो

पर इसलिए नहीं कि ये “वो” के पास है

इसलिए कि तुम्हें चाहिए

इसलिए कि तुम्हें ज़रुरत है

 

आज़ाद बनो नए ढंग चुनो

पर भूल मत जाना अपनी विशिष्टता

व्यक्तित्व जो तुम्हारी अपनी है

बनाए रखना

 

तुम नारी हो “नारी” ही रहो

पर तुम ही बनाओ पैमाने, तुम बनाओ मानक

मानकों को नर की जागीर मत मान बैठो

 

तुलना ना करो

करो जो तुम्हें है पसंद

 

तुम “तुम” रहना

“वो” मत बन जाना

 
 


तारीख: 25.12.2017                                    दीप शिखा









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