तुम्हे भूल गया तो मैं लिख नहीं पाऊंगा,
न कलम रिसेगी मेरी न गीत मैं गाऊंगा...
न लब खुलेंगे मेरे न बंसी मैं बजाऊंगा,
तुम्हे भूल गया तो मैं लिख नहीं पाऊंगा...
न सिलवाटे होंगी बिस्तर पर न ख्वाब मैं सजाऊंगा...
न काली होगी कालिक तो मैं लिख नहीं पाऊंगा...
नहीं मरेंगे दिलबर माशूक पर, न तहरीर कोई सजाऊंगा....
तेरी मुस्कान भूल गया तो लिख नहीं पाऊंगा
न देखूंगा हथेली तेरी, न अपनी लकीरों से मिलाऊंगा
न चोट लगेगी दिल पर मेरे तो लिख नहीं पाऊंगा
न सासें चलेंगी मेरी पर धड़कन तेरी बन जाऊँगा
तेरे दीदार का प्यासा न हुआ तो मैं लिख नहीं पाऊंगा
आँखें तो कर देंगी बयां, होठों से कह नहीं पाऊंगा,
तुम्हे भूल गया तो मैं लिख नहीं पाऊंगा...