वक्त की रफ्तार

वक़्त ठहरा था, रफ़्तार ठहरी थी
अब इन पदचापों को अतीत बना तो लूँ
वक़्त की डोर छूटने सी लगी थी
कोना इसका पकड़ूँ, कहीं गाँठ लगा तो लूँ


देखता रहा तेरी ओर ज़िंदगी भर
इन पलकों को अब झपका तो लूँ
यादों के भँवर में फँसा हूँ
यह कश्ती अब डुबा तो लूँ


कहानियों में तुझे लिखूँ
गीतों में तुझे गाऊँ
ज़िक्र तेरा करके
मन ही मन शरमा तो लूँ


रेत के घरौंदों पर
मेरे नाम की तख़्ती लगी थी
आँधियों के डर से
ये घर ढहा तो लूँ


सिमट से गए थे ये "लब" अरसे से
आज जी भर के खिलखिला तो लूँ
माना कि तू जीता था
हारा किससे हूँ
जानकर इठला तो लूँ
एक उम्र बिताई फिर समझ आया
जो रूठे थे उनको मना तो लूँ


तारीख: 30.05.2025                                    प्रतीक बिसारिया




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