यूँ झूटी मुस्कुराहटों के नक़ाब ओढ़े बैठे हो

वो दूसरा मौक़ा जो तुमने कभी ख़ुद को 
दिया ही नहीं
क्या तुम उसके हक़दार ना थे


यूँ जो उदास ख़ामोश बैठे हो मुँडेर पे
ऐसे तो तुम किरदार ना थे


चोट के निशान ज़रूर अपनो के दिए होंगे
ग़ैरों के वार तो कभी इतने असरदार ना थे
इज़्ज़त ज़मीर भी अब लटके हैं यहाँ
ऐसे तो कभी बाज़ार ना थे


यूँ झूटी मुस्कुराहटों के नक़ाब ओढ़े बैठे हो
ऐसे तो कभी तुम यार ना थे..


तारीख: 05.08.2017                                    राहुल तिवारी









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है