खुदा भी आजकल

खुदा भी आजकल खुद में ही परेशान होगा
ऊपर से जब कभी वो देखता इन्सान होगा ।
किस वास्ते थी बनाई कायनात के साथ हमें
और क्या हम बनकर हैं सोंचकर हैरान होगा ।
किया था मालामाल हमें दौलत-ए-कुदरत से
सोंचा था जीना हमारा बेहद आसान होगा ।
खूबसूरती अता की थी धरती को बेमिसाल
क्या पता था कि हिफाज़त में बेईमान होगा ।
दिलो-दिमाग दिये थे मिलजुलकर रहने को
इल्म न था लड़ने को हिन्दु मुसलमान होगा ।
खुदा तो खैर खुदा है लाजिमी है दुखी होना
देख कर हरक़तें हमारी शर्मिन्दा शैतान होगा ।


तारीख: 04.03.2024                                    अजय प्रसाद









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