श्वास दूलारी, मीत दूलारे, सबका तर्पण कर आया हूँ ।
राजसूय का घोड़ा हूँ मैं, विश्वविजेता बन आया हूँ ।
गंगा की संतान अमर मैं धर्म बचाने आया हूँ ।
अर्जुन बनने आया था, मैं अर्जुन बनके आया हूँ ।।
कर न्यौछावर सपनों को मैं देशभक्ति को आया हूँ ।
देश मिटाने आए जो, मैं उन्हें मिटाने आया हूँ ।
धरती के अँधियारे को, मैं सूर्य दिखाने आया हूँ ।
सपनों की किलकारी को, मैं गूँज बनाने आया हूँ ।
अर्जुन बनने आया था, मैं अर्जुन बनके आया हूँ ।।
लाज न आयी शमसीरों को, बनवीरों का साथ दिया ।
अपने बच्चों के क़त्लों पे, राज-पाट सब बाँट दिया ।
ऐसे जयचंदों की मैं, बलि चढ़ाने आया हूँ ।
अर्जुन बनने आया था, मैं अर्जुन बनके आया हूँ ।।
महलों में पलने वाले हम ऐसे न्यारे बोल नहीं ।
कोई भी बजवा दे हमको, ऐसे बेबस ढोल नहीं ।
अमर बेल न्यौछावर कर मैं रूद्र जगाने आया हूँ ।
बामन के बौनेपन से मैं बलि सिधाने आया हूँ ।
जिनके मन में रावण हैं, उन्हें राम दिखाने आया हूँ ।
अर्जुन बनने आया था, मैं अर्जुन बनके आया हूँ ।।
मौन रहे जो चीर-हरण पे, लाज हमें सिखलाते हैं ।
ऐसे अपमानों पर ही कुरुक्षेत्र सज जाते हैं ।
इतिहास न तुमको माफ करेगा, हर छल का इन्साफ करेगा ।
जग का हर कण जग ही लेगा, ऐसा कुछ इन्साफ करेगा ।।
लूटे तुमने राजखाजने रंगमहल बनवाये ।
मोह न आये बैरी मन को, क्यूँ ना तू पछताये ।
पर घाड़ियाली आँसू इनके छलक-छलक पगलाए हैं ।
इनको पाके जग बौराया, ये क्या खाके बौराये हैं ।
इनके ऐसे बौराहट को दूर भगाने आया हूँ ।
बहके अल्हड़ सपनों से मैं इन्हें जगाने आया हूँ ।
आज निराला होकर मैं पुरुषार्थ दिखाने आया हूँ ।
अर्जुन बनने आया था, मैं अर्जुन बनके आया हूँ ।।
धरती के ऐ लाल लहू सुन तेरा रंग निराला है ।
कह दो इस अँधियारे से फिर अर्जुन आने वाला है ।।