दो मिनट में
मोटी सूखी रोटी खा
गीत गाता
एक गरीब का बच्चा
माँ के लाख मनाने पर
पकवानों का नाश्ता करता
फिर भी शिकायतें करता
एक अमीर का बच्चा
बचपन वह भी है और यह भी
और दोनों मिल जाएँ
तो हंसते खेलते
सच्चे दोस्त भी बन जाएँ
अगर हम बड़े ना टोकें
बच्चे क्या जानें
अमीरी ग़रीबी
ये तो हम बड़े हैं
दायरे खींचते
बच्चों के पावन मन में
ऊँच नीच के बीज बोते
बच्चों को हम बच्चा रहने दें
उनके हिसाब से दुनिया चले
तो सबके पैरों में जूते
और सर पे छत हो
कोई भूखा ना सोए
अमीर गरीब का फ़र्क़ ही मिट जाए
ये तो हम बड़ों की दुनिया है
कि अपने गेट के बाहर
किसी को ठंड में सोता देख भी
चैन की नींद सो जाते हैं
अपने बड़े से ख़ाली कमरों में