कल भी था अकेला, आज भी हूँ अकेला

ज़िन्दगी के सफर में
कल भी था अकेला
आज भी हूँ अकेला
न कोई सपना
न कोई अपना
बस अतीत की
कुछ भूली-बिसरी यादों को
आँखों में समेटे निकल पड़ा हूँ
न कोई तस्वीर
न कोई तक़दीर
बस अनजानी राहों में
धुंधले पदचिन्हों का करके अनुसरण
धीरेसे-धीरे पग बढ़ाता हूँ
कभी भटकता हूँ,
कभी ठिठकता हूँ
मगर डिगता नहीं लक्ष्य-पथ पर
थक जाता हूँ जब कभी तो
गुफ्तगू कर लेता हूँअपनी तन्हाईयों से
कुछ पड़ाव कंटीले
कुछ पड़ाव नुकीले
मगर बहता हुआ पसीना
देता नहीं इजाज़त विश्राम की
भूख और प्यास जैसे शब्द
मिलते नहीं यहाँ शब्दकोश में
टेढ़े-मेढ़े रास्तों से ही
मंज़िल का पता पूछ लेता हूँ
कुछ मोड़ पथरीले
कुछ मोड़ हठीले
पैरों में चुभते कांटे और कंकड़
बार-बार अहसास कराते हैं कि
संघर्ष नहीं है ये आसान
इस पल भी चला जा रहा हूँ
और हर पल कहता है मुझसे
फिर से इक नए संघर्ष की दास्तान
यहाँ ज़िन्दगी से कर लो
कितनी भी गुजारिश चाहे
मोहलत की नहीं कोई गुंज़ाइश
मिले ना जब तक मंज़िल
चलते ही जाना है
बढ़ते ही जाना है
कल भी अकेला था और
आज भी अकेला हूँ


तारीख: 29.09.2019                                    किशन नेगी एकांत









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है