जिजीविषा

सुबह से शाम 

वो मशीन सी चलती जाती

काम निबटाती

एक के बाद एक

सब सो जाते

तब वो जागती

सोचती

दुनिया भर की बातें

जीवन के पन्ने पलटती

कितने प्रश्नों के उत्तर ढूंढ़ती

बेचैनियाँ, उम्मीदें, सपने

सब से गुजरती

ख़ुद से मिलती

ख़ुद से लड़ती

अथाह शब्द

असंख्य अर्थ

अनेकों भाव

ग़ौर से चुनती

और रचती कविता 

दुनिया के लिए महज़ शब्द

मगर उसके लिए ऊर्जा

जिजीविषा

रात के शांत प्रहर में

उसका सूर्योदय 

और फिर से तैयारी करती 

कुछ समय के लिए मशीन बनने की 


तारीख: 23.09.2019                                    पूर्वा




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