यही समय है
उसे मेहतर हो जाना होगा
अपने अंतर के लिए,
बाकी बचे सुंदर जीवन के लिए ।
खोस के लाज अपनी कमर पर,
उठानी होंगी सारी बजबजाती यादें,
पोछनी होगी मन की दीवारों पर लगी
दूसरे से मिली शर्म की कालिख
खुरचना होगा डर की जमी मैल को भी।
उठा कर मगर ये सब
वो अपने सर पर नहीं ढोएगी
फेंक देगी बड़ी जोर से
बाहर उसी सफेद झूठ की दुनिया में
जहां से सब भरा गया था उसमे।
एक बच्ची, युवती और वृद्धा
गंदगी कब तक ढोएगी दूसरों की,
जवाबदेही तय करेगी अब हर किसी की।