बहुत कुछ था
इस जहां में उसके लिए
जो उथल-पुथल मचा दे
उसके अन्तर्मन में
और वो लड़ पड़े
खुद से खुद के लिए
झगड़ पड़े अपनी वेदनाओं से
चिल्ला उठे अपनी ख्वाहिशों पे
पर वह चुपचाप
बचाती रही खुद को
अपनी ही वेदनाओं से
संभालती रही
अपनी इच्छाओं को
कुंडी लगा अपने
मचलते मन पे
स्नेह के इक स्पर्श से
जिंदगी को इक
स्वप्न की भांति
गुजार दी उसने...