बेटे

कदकाठी में हूबहू पिता के जैसे
आँख की नमी में माँ से लगते है,
खुशनसीब होते हैं ऐसे सारे घर
जहां बेटे परछाईं बन बहन में बसते हैं !

संबल , आस, उम्मीद जहां भर की,
हर सवाल के हाजिर जवाब में रखते हैं,
घर की रौनक बन चहकते बेटे,
परिवार को रौशन कर चिराग से दिखते हैं !

कभी झगड़े, कभी मस्ती , कभी धूम-धड़क्का
जिन्हें लड़ाकू कहकर दोस्त शिकायत करते हैं !
सबसे  से आँख बचाकर आज भी
अम्मा के तकिये के नीचे बटुआ छिपा कर रखते हैं !

रिश्ते की बात चले अगर कभी तो,
शर्माकर कनखियों से माहौल को तकते हैं !
फोटो देख अपने भावी जीवन साथी का,
पैर के अंगूठे से फर्श की दरार को कुरेदते हैं !

बेटा, भाई, पति और पिता का किरदार निभाकर,
अपने वजूद को तलाश हरबार तरसते हैं !
घर की नींव की ईंट में लगे सिमेंट जैसे,
रिश्तों में आई हर दरार को भरते हैं !

कदकाठी में हूबहू पिता के जैसे
आँख की नमी में माँ से लगते है,
खुशनसीब होते हैं ऐसे सारे घर
जहां बेटे परछाईं बन बहन में बसते हैं !


तारीख: 16.02.2024                                    सुजाता









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