बेटी विष धरती का पीने दो

मुझे चलने दो , कुछ करने दो ,
टोको न मुझे , हद करने दो ।
इज्ज़त भी हूँ , सम्मान हूँ मै ,
एहसास मुझे , पर पलने दो ।
अनुरोध है ये , मुझे जीने दो ,
ये विष धरती का , पीने दो
        पर जीने दो , मुझे जीने दो.....

हो गया जन्म एक सोच हुई ,
क्यों बोझ हुई , दहेजो का ।
हर रोज सिखाया , नया सफ़ा ,
चलते फिरते , परहेजों का ।
गुमनाम रही हर हस्ती से ,
मेहमानों से मुझे आड़ दिया ।
आशो का बस्ता , था मेरा ,
कुछ लोगो ने उसे फाड़ दिया ।
अधरों से प्यासी हुन कबसे ,
पानी तो , मुझे पीने दो ...
बैठी हूँ मै बीच सभा ,
मुझे विष धरती का पीने दो ।
है कसम तुम्हे , कुछ और नई ,
कलियों भी , खिल लेने दो ।
              पर जीने दो  , मुझे जीने दो..

जब हुई बड़ी , कुछ ख़ास हुआ ,
राधा जैसा आभास हुआ ,
कृष्णा जैसा माना उसको ,
मीरा जैसा बैराग हुआ ।
मिला विष मुझको , क्यों बदले में ,
राणा सांगा का वार हुआ ।
प्रतिकूल हवाएं क्यों बरसी ,
जीना मेरा , बेकार हुआ ।
प्यार हुआ जो गुनाह मेरा ,
ये ज़िद मुझको , जी लेने दो ।
बैठी हूँ मै  , बीच सभा ,
मुझे विष धरती का पीने दो ।
          पर जीने दो  , मुझे जीने दो...

न बचा प्यार , न परछाई ,
न रूह निकली , न जी पाई ।
इल्ज़ाम लगा , की रुसवाई ,
करदी घर की बर्बादी ...
नापाक है ये , बोलै मुझको ,
फिर करदी मेरी शादी ।
फिर बिकी लाश , एक दर मेरी ,
आये बनके बाराती...
एक मिला नूर रब का , मुझको ,
घर मेरे इक देवी आयी ।
मृदंग बजे दिल में फिर से ,
मायूसी थी , घर में छाई ।
फिर दोहराई है बात वही ,
इस गम से , फिर जी लेने दो ।

बैठी हूँ , मैं बीच सभा ,
मुझे विष धरती का पीने दो ,
              पर जीने दो..मुझे जीने दो...

अंतरिक्ष मे , तारो को , ( कल्पना चावला )
अखाड़ो में ,  विचारों को ( गीता फोगाट )
सियासत के गलियारों को , ( इंदिरा गांधी )
थी गोरी उन सरकारों को , ( लक्ष्मीबाई )
पहाड़ो को , है भेद दिया , ( बछेंद्री पाल )
फिर न जाने , क्यों लोगो ने ?
है बिन मसले के , रेत दिया ।
क्यों गटरों में  , फेंका हमको ?
नदियों को भी है , भेट किआ ।
रो रही हूँ माँ , ये सोच-सोच ,
क्यों तूने , मुझको पेट दिया ।
जो पेट दिया , तो घर देती ,
मैं घर को ,  तेरे भर देती ।
हर दुख को तेरे , हर लेती ,
अफ़सोस की अब ये बात गयी ,
बीत गयी , धारा बनके...
नदियों की धारा जीने दो ,
बैठी हूँ मैं , बीच सभा ,
मुझे विष धरती का पीने दो ।
          पर जीने दो....मुझे जीने दो ।।।


तारीख: 06.02.2024                                    दलबीर सिंह









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