ख्वाबों मेरे ख्वाबों

ख्वाबों मेरे ख्वाबों कभी  तो आराम करो 
कितना और उड़ोगे कहीं तो अब शाम करो 

थक कर बैठी हूँ मैं पीछे तुम्हारे भागते‑भागते 
आँख‐मिचोली के इस खेल में तुम हाथ कभी न आते 
इतनी ऊँची पींगे तुम्हारी कभी तो ढलान करो 
ख़्वाबों मेरे  ख्वाबों  कभी तो आराम करो 

आँखों में तुम जब सजते हो रौशन हो जाता है जग मेरा 
पर पल में गायब होने की ज़िद में टूट ही जाता है मन मेरा 
अपने सतरंगी मौसम से जीवन मेरा गुलफ़ाम करो 

ख़्वाबों मेरे ख्वाबों  कभी तो आराम करो 
कितना और उड़ोगे कहीं तो अब शाम करो 
 


तारीख: 30.07.2017                                    विभा नरसिम्हन









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