बस माँ, अब चलता हूँ

बस माँ, अब चलता हूँ।
गाड़ी छूट जाएगी, घर से निकलता हूँ।।

ऐसा लग रहा था मानो सारा समंदर तेरी आँखो मे उतर आया हो।
दुनिया की सारी पीड़ा, दर्द इस वक्त तेरे अन्दर ही समाया हो।।
फिर भी चेहरे पे मुस्कुराहट लाकर मुझे विदा कर रही थी।
मुझे पता है, अन्दर ही अन्दर तू कितना तड़प रही थी।।

तेरे मुख से एक भी शब्द नहीं निकला था।
पर शायद तू जो कहना चाह रही थी, मैंने सुन लिया था ।।

"रुक जा ना बेटा कुछ दिन और", तू यह कह रही थी।
और चुप-चाप मिठाई का डब्बा मेरे बैग मे रख रही थी।।
क्या हो जाएगा, अगर तेरा कालेज २-४ दिन छूट जाएगा।
ऐसा तो नहीं होगा, मानो पहाड़ टूट जाएगा ।।

तुझे पता है ना माँ, तू मेरे लिए क्या मायने रखती है।
मेरे लिए ना जाने तू कितना दुख सहती है।।
मेरी हर फरमाइश जुबां पे आते ही तूने पूरी की है।
मैं खुश रहूँ इसलिए अपनी हर ख्व्वाहिश अधूरी की है।।

ऐसा नहीं है कि तूने हमेशा प्यार ही किया है।
गुस्से मे बेलन, ठब्बू, लाठी से भी वार किया है।।
माँ, वो दिन बहुत याद आते हैं।
अकेले में मेरी आँखें नम कर जाते हैं।।

तेरे जैसा निस्वार्थ प्यार और भला कौन कर पाएगा।
तेरे इस बेटे के दिल में तेरी जगह और कोई नहीं ले पाएगा।।
बस माँ, अब चलता हूँ।
तू खुश रहे, इसलिए तो मैं जीता हूँ।।

तेरी हर ख्व्वाहिश मैं पूरी करूँगा।
तेरे लिए जीता हूँ, तेरे लिए ही मरूंगा।।
बाकी घरवालों के लिए 'सब' हैं तू।
मेरे लिए तो बस मेरा 'रब' हैं तू।।


तारीख: 20.06.2017                                                        शशांक सागर






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