चूड़ी भरी कलाइयों से

चूड़ी भरी कलाइयों से, मेहंदी रचे हाथों से,
चावल भरी मुट्ठी को, तेरे आंचल में जब मैंने छोड़ा,
पराया हुआ आंगन तेरा मां,
सोचा था अब मैं अपने घर  चली,
सबको बनाऊंगी अपना, 
हाथों से सजाऊंगी घर अपना यह सोच चली,
पर मां! जिंदगी के  किस मोड़ में ,मैं आकर खड़ी,
यहां भी मैं अपना घर ना पा सकी,
तमग़ा यह दे दिया" पराए घर से आ पड़ी"
तानों से यहां हुई मेरी मुंह दिखाइए,
झूठे  इल्जामों से बनाई  मेरी परछाई,
रिश्ते नाते यहां के खोटे,
यहां सब एक से बढ़कर एक झूठे,
अभी तक मैं तेरी नंदिनी थी,
अब बन कर रह गई हूं मैं निंदनीय मां,
अपनी बेटी के छुपाते हैं हर राज़,
तेरी बेटी पर लगाते हैं भर -भर इल्जाम ,
यह कैसा है संसार यहां??
वह घर भी ना मेरा, यह घर भी ना मेरा,
अब तू ही बता कहां है संसार मेरा?
सच यही है-
तेरी कोख में ही था संसार  मेरा।।


तारीख: 07.03.2024                                    दीपिका राज सोलंकी









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