कोरोना लॉक डाउन

गहन सन्नाटा है, सड़कें ख़ाली हैं 
फिर भी इक अज़ब ख़लबली सी है, 
ज़िन्दगी इस कदर मंद-रफ़्तार हो कर भी 
हर पल बदली बदली सी है | 

यूँ तो शोर है, चिल्लाहट है, 
गुस्सा बौखलाहट भी है कहीं कहीं, 
मगर हर कर्कश आवाज़ के पीछे छिपी 
कोई बेबस रुदाली सी है | 

होंठों के किनारे तो जैसे 
ऊपर उठना ही भूल गए हों, 
दुनिया भर की आँखों में छलछलाई
सिसकती नमी नमी सी है | 

कैसी नीरस हैं चार दीवारी की 
खिड़कियों से झांकती मानव आँखें, 
पशु-पक्षियों, जीव-जंतुओं की नज़रें 
क्यूँ उमंगित खिली खिली सी हैं? 

इस अदृश्य सूक्षम जीवाणु को 
हर हाल में हराना है, बस यही लक्ष्य है, 
विश्व परमाणु-युद्ध में जीतने की बात 
फिलहाल अभी टली टली सी है | 

गहन सन्नाटा है, सड़कें ख़ाली हैं 
फिर भी इक अज़ब ख़लबली सी है, 
ज़िन्दगी इस क़दर मंद-रफ़्तार हो कर भी 
हर पल बदली बदली सी है | 


तारीख: 14.04.2024                                    अलका गिरधर









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