भारतमाता

स्वर्णिम ओज सिर मुकुट धारणी, विभूषित चन्द्र ललाट पर
गुंजन करे ये मधुर कल-कल, केशिक हिमाद्रि सवारकर
आभामय है मुखमडंल तेरा, स्नेहपू्र्णिता अतंरमन ।
अभिवादन माँ भारती, मातृभूमि त्वमेव् नमन ।।

बेल-लताँए विराजित ऐसे, कल्पित है जैसे कुण्डल
ओढ दुशाला तुम वन-खलिहन का , जैसे हरित कोमल मखमल
तेरा यह श्रृंगार अतुलनीय, भावविभोर कर बैठे मन ।
वन्दे तु परिमुग्ध धरित्री, धन्य हे धरा अमूल्यम् ।।

वाम हस्त तुम खडग धरे, दाहिने में अंगार तुम
नेत्र-चक्षु सब दहक रहे, त्राहि-त्राहि पुकारे जन-जन
स्वाँग रचे रिपु पग-पग गृह में, इन दुष्टों का करो दमन ।
पूजनीय हे सिंधुप्रिये तुम, मातृभूमि त्वमेव् नमन ।।
                                                             
                            


तारीख: 02.07.2017                                    कायाल्पिक









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